सं १५५१ वि भाद्रपद शुक्ला नवमी के दिन तलवण्डी ग्राम में श्री-नानकदेवजी की धर्मपत्नी सुलक्षणी (सुलक्षणा) जी की पावन कुक्षी से भगवान् शंकर श्रीचन्द्ररूप में आविर्भूत हुए।
जन्मसमय भगवान् ने अपनी माता को शिव-स्वरूप में दर्शन दिये। माता की प्रार्थना आप फिर शिशुरूप होकर माता की गोद में लेट गये। श्री नानकजी ने अपनी बहन से कहा-
यह कोई साधारण शिशु नहीं है, यह तो साक्षात् भगवान् शंकर ने हमारे घर में जन्म लिया है। संसार में दो ही महापुरूष ऐसे हुए हैं, जो अपनी भावी अनुष्ठेयधर्म के सूचक चिह्नों के साथ उत्पन्न हुए हैं।
एक तो दानवीर कर्ण थे। ये क्षात्रयाग्रगण्य दानवीर कर्ण थे। दूसरे, उदासीनाचार्य भगवान् श्रीचनद्रजी, ये जटाभस्मादि वैराग्य के चिन्ह लेकर अवतीर्ण हुए।
~गुरु गंगेश्वरानन्द जी महाराज द्वारा रचयता ग्रंथ ‘ श्रौतमुनिचरितामृत’ से ।
~गुरु गंगेश्वरानन्द जी महाराज द्वारा रचयता ग्रंथ ‘ श्रौतमुनिचरितामृत’ से ।
(Full Article under JEEVANI Section)
SHRI 108 BABA GURU DATTA JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA HUSNAJI MAHARAJ
SHRI 108 BABA PURANDAS JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA DAYALDAS JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA MAANDAS JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA SEVADAS JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA NARAYANDAS JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA DAYARAM JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA NAND DAS JI MAHARAJ
SHRI 108 BABA GURUDAS JI MAHARAJ

The history of 6 Acharyas after Purandasji is not known.